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वो जज़्बो में गहरा सात समंदर से / हनीफ़ राही
Kavita Kosh से
वो जज़्बो में गहरा सात समंदर से
मैंने उसको देख लिया है अंदर से
आज हमें जो ज़ख़्म लगे हैं पत्थर से
मुमकिन है कल भर जायेंगे ख़ंजर से
कब दौड़ेगा ख़ून रगो में बदले का
कब निकलेगी राख़ हमारे अंदर से
और भी है रंगीन मनाज़िर सड़कों पर
बाहर आके देखो ख़ाब की चादर से
कुछ न कुछ तो बात है तुझमें ए जाना
चाँद ज़मी पे देख रहा है अम्बर से