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वो जानती है / नरेश गुर्जर
Kavita Kosh से
बारिशों में
पोंछ देती है वो
मेरा भीगा हुआ माथा
अपनी साड़ी के पल्लू से
सर्दियों में
ताप कर अपने हाथ
सहलाती है बार बार
मेरे चेहरे को
अपनी गर्म हथेलियों से
गर्मियों में
लग जाती है सीने से
अपने गीले बालों के साथ
जब आती है नहाकर
वो जानती है
किस मौसम में
कैसे करना है प्यार!