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वो जाने श्याम की नजरों के मजे कस-कस के / बिन्दु जी

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वो जाने श्याम की नजरों के मजे कस-कस के।
जिन्होंने खूब सहे वार दिल में हँस-हँस के।
मिठास मिल चुकी उनको है मधुर मूरति की।
भ्रमर हैं जो कमल मुख पराग-रस के।
उठा चुके हैं जो कुल नाज कभी मोहन के।
उन्हें है याद वो आनन्द उनकी नस-नस के।
गजब कमाल अमानत में है खयानत का।
जिगर पर करते है कब्जा जिगर में बस-बस के।
नशे में रूप के फंदे में जान उल्फ़त के।
तड़पते रहते हैं आँखों के ‘बिन्दु” फँस-फँस के।