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वो जो कॉफी उधार है तुम पर / अर्चना अर्चन
Kavita Kosh से
वो जो कॉफी उधार है तुम पर
महज़ एक मग नहीं है
भाप उगलता हुआ
वक्त है
वो जो संग तुम्हारे
बिताना है मुझे
हौले-हौले चुस्कियाँ लेते हुए
उस वक्त को लंबा
और भी लंबा खींचना है मुझे
हंसना मत मुझपर
गर ठंडी हो चुकी उस कॉफी को भी मैं
ठंडा. और भी ठंडा होने दूं
और फिर पियूं भी,
तो यूं
मानो अब भी हो बहुत गर्म
बस समझ जाना
अभी और वक्त बिताना चाहती हूँ
तुम्हारे साथ
वो जो कॉफी उधार है तुम पर
महज बहाना नहीं है,
तुमसे मुलाकात का
एक अहसास है
नया
बेहद खुशनुमा सा
उन पलों को
जी भर के जीना है मुझे
वो जो कॉफी उधार है तुमपे
बस इतना समझ लो
चंद सांसें उधार हैं तुमपे!