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वो जो छुप जाते थे काबों में सनमख़ानों में / मख़दूम मोहिउद्दीन

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वो जो छुप जाते थे काबों में सनमख़ानों में
उनको ला-ला के बिठाया गया दीवानों में ।

फ़स्ले-गुल होती थी क्या जश्ने जुनूँ होता था
आज कुछ भी नहीं होता है गुलिस्तानों में ।

आज तो तलख़िए दौराँ<ref>दौर की कड़वाहट</ref> भी बहुत हल्की है
घोल दो हिज्र की रातों को भी पैमानों में ।

आज तक तन्ज़े मुहब्बत का असर बाक़ी है
क़हक़हे गूँजते फिरते हैं बियाबानों में ।

वस्ल है उनकी अदा हिज्र है उनका अन्दाज़
कौन-सा रंग भरूँ इश्क़ के अफ़सानों में ।

शहर में धूम है इक शोला नवा<ref>आग उगलने वाला</ref> की 'मख़दूम'
तज़किरे<ref>चर्चे</ref> रस्तों में चर्चे हैं परीख़ानों में ।

शब्दार्थ
<references/>