भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो जो तूफ़ां से या आँधी से न डर जाते हैं / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो जो तूफ़ां से या आँधी से न डर जाते हैं
एक कश्ती ले समन्दर में उतर जाते हैं

खौफ़ कब होता उन्हें मुश्किलों से राहों की
फूल या खार हों हर पथ से गुजर जाते हैं

राहबर होना भी आसान कहाँ है होता
रहजनी कर के जो ईमान से मर जाते हैं

नर्म होठों पे मुस्कुराहटें रहीं जिन के
जाने क्यों लोग वो रस्ते में ठहर जाते हैं

चाह दिल मे हो तो खिल जाते रेगजारों में
वरना गुलशन में खिले फूल बिखर जाते हैं

उनके वादों का भरोसा भी करें तो कैसे
आज कहते हैं जो कल उस से मुकर जाते हैं

हमको तारीक सियाह रात डराती है मगर
रौशनी मिलती नहीं चाहे जिधर जाते हैं

हम किसी और के सेहरे का फूल क्यों चाहें
सोच लें बात जो ऐसी तो सिहर जाते हैं

बद्दुआओं से बचें और मददगार बने
लेख तकदीर के ऐसे भी सँवर जाते हैं