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वो जो थोड़ी मुश्किलों से हो के आजिज मर गए / शतदल
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वो जो थोड़ी मुश्किलों से हो के आजिज मर गए ।
उनसे क्या उम्मीद थी और देखिए क्या कर गए ?
उस इमारत को भला पुख़्ता इमारत क्या कहें
नींव में जिसकी लगाए मोम के पत्थर गए ।
उम्र भर अन्धी गुफ़ाओं में रहे दरअसल हम
इसलिए कल धूप में साए से अपने डर गए ।
फूल खिलते हैं बड़ी उम्मीद से, देखो इन्हें
उम्र थोड़ी मुस्करा कर डालियों से झर गए ।
बँट रहा है तेल मिट्टी का किसी ने जब कहा
छोड़ कर बच्चे मदरसा अपने-अपने घर गए ।
हम किसी को क्या समझ पाते कि करते एहतराम
हम तो अपने वक़्त से पहले ही यारो! मर गए ।