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वो जो नही तो मैं भी नही / ईशान पथिक
Kavita Kosh से
वो रोई जब मैं बुझ सा गया
वो जब भी हँसी मैं चमक गया
जैसे वो आग दिए की हो
उसको पाकर मैं दमक गया
मैं चाँद अगर
वो सूरज है
वो जो नही
तो मैं भी नही
कभी यूँ ही उड़ते हुए मुझे
एक सुुु्न्दर साथी मिल ही गया
मैने जैसे ही छुआ उसे
एक पल में वो तो खिल ही गया
मैं भंवर कोई
वो पुष्पलता
वो जो नही
तो मैं भी नही
मेरी मंज़िल बस वो ही है
मैं उससे मिलने बहता हूँ
हर मोड़ को हर पत्थर को
बस प्यार सिखाता रहता हूँ
मैं नदी कोई
वो सागर है
वो जो नही
तो मैं भी नही