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वो जो लाया उज़ाले नगर के लिये / उर्मिल सत्यभूषण

वो जो लाया उज़ाले नगर के लिये
रोशनी न बची उसके घर के लिये

कुमकुमे जुगनुओं के बहुत थे मगर
वो न काफ़ी थे अंधे सफ़र के लिये

इल्म के वो मसीहा क़लम के धनी
सिर्फ़ खंज़र बने उसके सर के लिये

बरगदों ने बुलाया बड़े प्यार से
शाख़ कोई नहीं दी लतर के लिये

उसने चाहा बहुत था ग़ज़लगो बने
क़ाफिये न मिले हर बहर के लिये

गो उजालों से उसकी कभी न बनी
रात कुर्बान उर्मिल सहर के लिये