भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो जो सबका सहारा लगता है / दरवेश भारती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो जो सबका सहारा लगता है
खुद में दरका किनारा लगता है

बो रहा है जगह, जगह जो बबूल
कोई फूलों का मारा लगता है

कोई महफ़िल से क्यों उठाता हमें
ये तेरा ही इशारा लगता है

अपनी माटी को लौटने वाला
शहरी हलचल से हारा लगता है

राज़े-दिल तुझसे क्यों कहें 'दरवेश'
तू भला क्या हमारा लगता है