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वो जो सबका सहारा लगता है / दरवेश भारती
Kavita Kosh से
वो जो सबका सहारा लगता है
खुद में दरका किनारा लगता है
बो रहा है जगह, जगह जो बबूल
कोई फूलों का मारा लगता है
कोई महफ़िल से क्यों उठाता हमें
ये तेरा ही इशारा लगता है
अपनी माटी को लौटने वाला
शहरी हलचल से हारा लगता है
राज़े-दिल तुझसे क्यों कहें 'दरवेश'
तू भला क्या हमारा लगता है