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वो दिल जो तेरी याद से बेज़ार नहीं है / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
वो दिल जो तेरी याद से बेज़ार नहीं है
दुनिया के तमाशों में गिरफ्तार नहीं है
इस दौर में तो बर्फ की मानिंद हैं रिश्ते
गर्मी भी नहीं दिल में कोई प्यार नहीं है
अल्फाज़ से तुमने मेरे दिल के किये टुकड़े
हाँ हाथ में बेशक कोई हथियार नहीं है
औरत की तो सब अग्नि परीक्षा के है तालिब
कोई भी मगर राम सा किरदार नहीं है
घर को भी मेरे चाहिए एक धूप का टुकड़ा
भाती मुझे ऊँची तेरी दीवार नहीं है
जाड़े में ठिठुरते हुए फुटपाथ पे सोयें
कितने है जिनका कोई भी घरबार नहीं है
सस्ती है पसीने से सिया शायरी मेरी
ग़ज़लों का मेरी कोई खरीदार नहीं है