वो दिल से कम मुस्कावे है
असली तस्वीर छिपावे है
वो प्रीत जगावे है डर से
सुलगाकर आग बुझावे है
वो पंडित है दीवाना भी
चुंबन को श्लोक बतावे है
वो कौन गुलाबों पर अपने
अधरों को रख-रख जावे है
फूलों के गुन हैं इसमें भी
ग़ज़लों को ग़म महकावे है