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वो दिल ही क्या धड़के न कभी / देवी नांगरानी

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वो दिल ही क्या धड़के न कभी
जो साज़ को सरगम दे न कभी

वो आँख ही क्या जो रो न सके
गुलशन दिल का सींचे न कभी

हम लाख ग़मों से खेले हैं
ख़ुशियों से मगर खेले न कभी

वो सोच अधूरी कैसे सजे
लफ्ज़ों का लिबास ओढ़े न कभी

हम खेल रहे हैं किनारों पर
गहरे दिल में डूबे न कभी

तारों से सजी महफि़ल ‘देवी’
बिन चाँद के वो भाये न कभी