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वो धमाका अजब कर गया / हरिराज सिंह 'नूर'

वो धमाका अजब कर गया।
आदमी ख़ौफ़ से मर गया।

बेहिसी सब पे क़ाबिज़ हुई,
ज़हर नस-नस में वो भर गया।

कौन-किसके बराबर हुआ?
कैसे कहता वो जब डर गया।

उसकी यादों में कैसा असर?
सबसे कहता सुख़नवर गया।

आरज़ू उसकी पूरी हुई,
वक़्त देकर उसे ज़र गया।

जब नज़र आया कोई नहीं,
वो उदासी लिए घर गया।

‘नूर’ ही नूर चारों तरफ़,
कौन आँखों में घर कर गया।