वो ध्यान की राहों में जहाँ हम को मिलेगा / उर्फी आफ़ाक़ी
वो ध्यान की राहों में जहाँ हम को मिलेगा
बस एक छलावे सा कोई दम को मिलेगा
अनजानी ज़मीनों से मुझे देगा सदा वो
नैरंग-ए-नवा-शौक़ की सरगम को मिलेगा
मैं अजनबी हो जाऊँगा ख़ुद अपनी नज़र में
जिस दम वो मिरे दीदा-ए-पुर-नम को मिलेगा
जो नक़्श कि अर्ज़ंग-ए-ज़माना में नहीं है
उस दिल के धड़कते हुए अल्बम को मिलेगा
रूत वस्त की आएगी चली जाएगी लेकिन
कुछ रंग तो यूँ हिज्र के मौसम को मिलेगा
ये दिल कि है ठुकराया हुआ सारे जहाँ का
घर एक यही है जो तिरे गम को मिलेगा
पत्थर है तो ठोकर में रहे पा-ए-तलब की
दिल है तो उसी तुर्रा-ए-पुर-ख़म को मिलेगा
गर शीशा-ए-मय है तो हो औरों को मुबारक
है जाम-ए-जहाँ-बीं तो फ़क़त जम को मिलेगा
लहराते रहेंगे चमनिस्ताँ में शरारे
ख़ार ओ ख़स ओ ख़ाशाक ही आलम को मिलेगा
मालूम है ‘उर्फ़ी’ जो है क़िस्मत में हमारी
सहरा ही कोई गिर्या-ए-शबनम को मिलेगा