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वो नज़र बदगुमां सी लगती है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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 वो नज़र बदगुमां सी लगती है
ज़िंदगी रायगां सी लगती है

जिस पे वो मह्वे ख़ुश-ख़िरामी हों
वो ज़मीं आसमां सी लगती है

नक्श़े-पा हैं कि माह-ओ-अंजुम हैं
रहगुज़र कह्कशां सी लगती है

ज़िक्र हो जिस में उस परी-वश का
वो ग़ज़ल नौजवां सी लगती है

आर्ज़ूओं के ख़ूने-नाहक़ में
दिल की कश्ती रवां सी लगती है

तेरी तन्हा-रवी भी ऐ 'रहबर`
कारवां कारवां सी लगती है