भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो नज़र बदगुमां सी लगती है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
Kavita Kosh से
वो नज़र बदगुमां सी लगती है
ज़िंदगी रायगां सी लगती है
जिस पे वो मह्वे ख़ुश-ख़िरामी हों
वो ज़मीं आसमां सी लगती है
नक्श़े-पा हैं कि माह-ओ-अंजुम हैं
रहगुज़र कह्कशां सी लगती है
ज़िक्र हो जिस में उस परी-वश का
वो ग़ज़ल नौजवां सी लगती है
आर्ज़ूओं के ख़ूने-नाहक़ में
दिल की कश्ती रवां सी लगती है
तेरी तन्हा-रवी भी ऐ 'रहबर`
कारवां कारवां सी लगती है