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वो नदी, उस नदी में बहती जलधारा / कपिल भारद्वाज
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वो नदी,
उस नदी में बहती जलधारा,
उस जलधारा में बहते जलकण,
पैदा करते हैं,
कितना मधुर संगीत ,
जब-जब टकराते हैं,
किसी सूखी चट्टान से !
छिपते सूरज की बेला में,
बहुत मन भाता है वो संगीत,
घूंट-घूंट पी रहा होता हूं,
उस कर्णप्रिय संगीत को,
उतार रहा होता हूं,
अपने ह्रदय में !
सच पूछो तो,
मुझे उसी संगीत का एहसास,
मेरी प्रेमिका की ‘ना’ में भी होता है,
जो, छिपते सूरज की हर बेला में,
मुझे सूखी चट्टान कर देती है !