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वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ / ग़ालिब

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वो फ़िराक़<ref>वियोग</ref> और वो विसाल<ref>मिलन</ref> कहाँ
वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल<ref>रात, दिन, महीने, साल</ref> कहाँ

फ़ुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक़ किसे
जौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल<ref>सौंदर्य देखने की इच्छा</ref> कहाँ

दिल तो दिल वो दिमाग़ भी न रहा
शोर-ए-सौदा-ए-ख़त्त-ओ-ख़ाल<ref>रूप-रेखा का सामान</ref> कहाँ

थी वो इक शख्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़याल<ref>सौंदर्य विचार</ref> कहाँ

ऐसा आसां नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल<ref>मस्ती</ref> कहाँ

हमसे छूटा क़िमारख़ाना-ए-इश्क़<ref>प्रेम का जुआखाना</ref>
वां जो जावें, गिरह<ref>जेब</ref> में माल कहाँ

फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल<ref>झंझट</ref> कहाँ

मुज़्मंहिल<ref>शिथिल</ref> हो गये क़ुवा<ref>शक्ति, ताकत</ref> "ग़ालिब"
वो अ़नासिर<ref>तत्व</ref> में एतदाल<ref>संतुलन</ref> कहाँ

शब्दार्थ
<references/>