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वो बचपन के नन्हें से साथी वो बातें / शोभा कुक्कल

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वो बचपन के नन्हें से साथी वो बातें
कहां हैं वो फ़ुर्सत के दिन और रातें

बहुत याद आती है मुड़ कर जो देखूं
वो सुबहें, वो शामें, वो घातें वो रातें

लियाक़त को कोई नहीं पूछता अब
दिलाती है अब नौकरी सिर्फ जातें

कहो लीडरों से बयां बाज़ी छोडें
कभी गांधी जी का ये चर्खा भी कातें

ख़ुदा जाने अंजाम क्या हो हमारा
ये बढ़ती हुई नित नई वारदातें

ख़ुदा जाने अंजाम शादी का क्या हो
मगर नाचती जा रही हैं बरातें।