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वो बढ़के जो बाँहों में उठा लेते हैं / जाँ निसार अख़्तर
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वो बढ़के जो बाँहों में उठा लेते हैं
हो जाता है मालूम नहीं क्या मुझको
ऐसे में न जाने क्यों सखी लगता है
ख़ुद मेरा बदन फूल से हल्का मुझको