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वो बात-बात में बातें हज़ार करता है / शोभा कुक्कल
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वो बात-बात में बातें हज़ार करता है
फिर ऐसे शख्स का कौन ऐतबार करता है
ये जानता है कि है ज़िन्दगी बड़ी बेफैज़
वो ज़िन्दगी पे मगर जां निसार करता है
ये ज़िन्दगी उसे इक रोज़ रुख़ दिखायेगी
जो ज़िन्दगी पे बड़ा ऐतबार करता है
नहीं है दौलतो-शुहरत की भी उसे हसरत
फ़क़ीर किसका है वो किससे प्यार करता है
वो एक राही था उसको नहीं ठहरना था
तू ज़िहनो दिल पे उसे क्यों सवार करता है
वो दोस्त हमको नहीं जानता खुशी उसकी
वो दुश्मनों में तो हमको शुमार करता है
न जाने किसका उसे इंतज़ार है 'शोभा'
वो रात जाग के तारे शुमार करता है।