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वो बिना ही कुछ काम / अशेष श्रीवास्तव
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वो बिना ही कुछ काम
मुझसे मिलने आया है
ज़िंदा हैं खरे कुछ रिश्ते
शायद ये बताने आया है...
जब तलक खुशियाँ रहीं
तुझको ख़ूब भुलाया है
जब कोई मुसीबत आयी
तू ही बस याद आया है...
दिन रात औरों से जलता रहा
कोई सुख कभी न पाया है
किससे कहें क्यों दुख मिले
जो बोया था वह पाया है...
सारी रात न जाने क्यों
आज ना वह सो पाया है
शायद किसी बेकसूर का
दिल उसने ख़ूब दुखाया है...
उसने मुझे भुला दिया पर
मैंने नहीं भुलाया है
जब भी उसे चोट पहुँची तो
दर्द ने मुझे रुलाया है...
अंधकार में निकल चंद्रमा
रौशनी ले कर आया है
जैसे दुश्मन दुनियाँ में तू
साथ निभाने आया है...