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वो बूढ़ा हो गया चक्कर लगा करके दीवानी के / नन्दी लाल
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वो बूढ़ा हो गया चक्कर लगा करके दीवानी के।
वकीलों की दलाली बाबुओं की निगहबानी के।
लहू का रंग केवल लाल होता एक होता है,
हजारों रंग होते हैं यहाँ पर यार पानी के।
न देखे खेत व खलिहान जीवन में कभी जिसने,
हमें टाटा सिखायेंगे पुराने गुर किसानी के।
सजी रहती हमेशा ही दुल्हन सी कोई मौसम हो,
बड़े नखरे निराले हैं हमारी राजधानी के।
उठाने को तो सारी उम्र हैं नखरे उठाने को,
नई की बात करते हो अभी देखों पुरानी के।
अधूरी छोड़ दी जाये तो यह अच्छा नहीं लगता,
अभी कुछ और पन्ने शेष हैं उसकी कहानी के।