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वो भड़क उट्ठा ज़रा सी बात पे / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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वो भड़क उट्ठा ज़रा सी बात पे
मुझको भी आना पड़ा औक़ात पे
कुछ तो मिल जाता इशारा आपका
कब तलक क़ाबू रखें जज़्बात पे
है तेरी नज़रे-इनायत से हयात
है किसानी मुनहसिर बरसात पे
हम बिखरने टूटने से बच गये
हौसला भारी पड़ा हालात पे
दिन कहाँ है, दिन तो छुट्टी पर गया
छोड़ कर सब ज़िम्मेदारी रात पे
बादलों का नाम तक आया नहीं
हो चुका है तब्सरा बरसात पे
ऐ ‘अकेला’ दर्द छूमंतर हुआ
हाथ रक्खा उसने मेरे हाथ पे