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वो भविष्य था / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’
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जो गुजर गया...
वो कभी भविष्य था,
पर... क्या वर्तमान तुमने जिया..?
यही वर्तमान तो सत्य है,
शाश्वत भी...
न भूत, न ही भविष्य...
सत्कर्म ही उत्कृष्ट है
वह ब्रह्मांड भी कहाँ रिक्त है...
यह अस्तित्व भी तो उसी से है,
है विज्ञान अनंत आकाश का
जो समझ गया, विशिष्ट है
जो समझा ही नहीं, निकृष्ट है...
जीव साधना कोई कला नहीं
केवल दैहिक रचनातंत्र है,
सिहारने जो मस्तिष्क तेरा
वही नश्वर को देता मंत्र है
गति समय का मूल तंत्र है,
ब्रह्मांड यह... अनंत है... अनंत है...