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वो मुझे जुर्रते-इज़हार से पहचानता है / मुनव्वर राना


वो मुझे जुर्रते-इज़्हार<ref>अभिव्यक्ति के साहस</ref> से पहचानता है
मेरा दुश्मन भी मुझे वार से पहचानता है
 
शहर वाक़िफ़<ref>परिचित</ref>है मेरे फ़न<ref>कला</ref>की बदौलत<ref>कारण</ref> मुझसे
आपको जुब्बा-ओ-दस्तार<ref>पहरावे और पगड़ी से</ref>से पहचानता है

फिर क़बूतर की वफ़ादारी पे शक मत करना
वो तो घर को इसी मीनार से पहचानता है

कोई दुख हो कभी कहना नहीं पड़ता उससे
वो ज़रूरत को तलबगार<ref>ज़रूरतमंद</ref>से पहचानता है

उसको ख़ुश्बू के परखने का सलीक़ा ही नहीं
फूल को क़ीमते-बाज़ार<ref>बाज़ारी-मूल्य</ref>से पहचानता है

शब्दार्थ
<references/>