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वो मुसाफ़िर जो थक गया होगा / ज़िया फतेहाबादी
Kavita Kosh से
वो मुसाफ़िर जो थक गया होगा,
रास्ते से भटक गया होगा ।
गुन्चा-गुन्चा चटक गया होगा,
गोशा-गोशा महक गया होगा ।
आहटें नर्म-नर्म पत्तों की,
पेड़ पर आम पक गया होगा ।
डाल कर फन्दा अपनी गरदन में,
कोई छत से लटक गया होगा ।
मुड़ के देखा जो तू ने लोगों को,
मेरी नज़रों पे शक गया होगा ।
उसकी उँगली पकड़ के चलता था,
हाथ मेरा झटक गया होगा ।
अरे अहसास-ए तिशनगी तौबा,
कोई साग़र ख़नक गया होगा
गिरता पड़ता ये जादा-ए पुरपेच
ऐ ’ज़िया’ दूर तक गया होगा ।