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वो लड़कियाँ 2 / स्मिता सिन्हा

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मुझे अच्छी लगती हैं
वो लड़कियाँ
जो छटपटाहट में भी करती हैं
हँसी की बात
पक्षियों की बात
उस नीली नदी की बात
गीत की बात
गज़ल की बात
जो अँधेरी रात में छत पर बैठीं
गिनती हैं तारे -सितारे
बनाती हैं आकाश की दुछत्ती
और बेवजह खिलखिलाती रहती हैं देर तक
जो ओढ़ती हैं आकाश की नीरवता
और चुपके से वहीं कहीं
किसी बादल की ओट में छुपा आती हैं
अपने आँसुओं को

मुझे अच्छी लगती हैं
वो लड़कियाँ
जो बेहिचक नज़रें मिलाती हैं
उस रुपहले सूरज से
सम्भालती हैं उससे रिसते अंगारों को
अपने परों पर
लहकती हैं
झुलसती हैं
होती हैं राख
फ़िर खुद ही बनाती हैं खुद को
कि फिनिक्स लुभाते हैं उन्हें
कि जहन्नुम से जन्नत का रास्ता
दुरुह नहीं उनके लिये

मुझे अच्छी लगती हैं
मुझ सी लड़कियाँ
जो पहरों में गुज़रती हैं
रहती हैं जिस्म में परछाईं सी
जो बेख्याली में करती हैं
इश्क की बातें
पर कभी किसी से
इश्क नहीं करतीं...