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वो शख्स दिख गया है फिर से आया गाँवों में / अमरेन्द्र
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वो शख्स दिख गया है फिर से आया गाँवों में
बड़ा ही खौफ है छाया हुआ हवाओं में
ये सुब्ह तुमको जो इतनी हसीन लगती है
मेरे लहू का ही है रंग इन शुआओं में
तुम्हें भले ही वो तारीफ अच्छी लगती हो
किसी का घुट रहा था दम भी वाह-वाहों में
परिन्दे, पेड़ और पर्वत सभी उबे से मिले
अजीब रिश्ता मिला सबकी आहो-आहों में
हवा के पंख से उड़ती हुई वो खुश चिड़िया
किसे बुलाती थी अपनी सधी सदाओं में
उसे मिलेगी कहो कैसे उसकी ही मंजिल
जो बेड़ियों को लगाए हुए है पाँवों में
मुझे क्यों आपकी बातों से शिकायत होती
यहाँ तो शोला बरसता है बीच छाँवों में
तू डूबने से कैसे बच गया फिर 'अमरेन्दर'
दुबारा डूब के उस झील-सी निगाहों में ।