वो शहर था, वो कोई जंगल न था
रास्ता फिर भी कहीं समतल न था।
सिर्फ कहने भर को थी पदयात्रा
क़ाफ़िले में एक भी पैदल न था।
पाँव रखते भी सियासत में कहाँ
किस जगह कीचड़ न था, दलदल न था।
मज़हबों से ज़ख्म पहले भी मिले
दिल मगर इतना कभी घायल न था।
आसमां का साया भी छोटा लगा
एक माँ का जिसके सर आँचल न था।