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वो शहर था, वो कोई / कमलेश भट्ट 'कमल'

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वो शहर था, वो कोई जंगल न था

रास्ता फिर भी कहीं समतल न था।


सिर्फ कहने भर को थी पदयात्रा

क़ाफ़िले में एक भी पैदल न था।


पाँव रखते भी सियासत में कहाँ

किस जगह कीचड़ न था, दलदल न था।


मज़हबों से ज़ख्म पहले भी मिले

दिल मगर इतना कभी घायल न था।


आसमां का साया भी छोटा लगा

एक माँ का जिसके सर आँचल न था।