वो सर्दी - गर्मी और बारिश / अनुपमा तिवाड़ी
वो, सर्द सुबह में
कोहरे की मावठ में
दांत किटकिटाता,
भीगता जा रहा था
फिर भी,
उसने मेरा शॉल,
मेरे देने पर भी, नहीं लिया था.
वो चला गया था
भीगता,
दांत किटकिटाता,
बड़बड़ाता.
मुझे नहीं पता उसके जाने के बाद
मुझे, मेरा शॉल गर्म लगा या ठंडा या उदास ?
वो, तपती दोपहरी में
गूदड़ गादड़ लपेटे,
नंगे पैर
डामर की तप्त सड़क पर चलती जा रही थी
और मेरा मन कह रहा था
अरे ! किसी पेड़ की छायाँ में ही बैठ जाती.
पर, यह मेरा दिमाग कह रहा था.
काश ! उसका दिमाग ये कह पाता.
वो, बारिश में यज्ञ कर रहे थे
इन्द्रदेव को बुलाने का,
नाप रहे थे पानी मावठे का.
सूखा अच्छा नहीं लगता
सूखे में,
सूख जाते हैं, आँसू भी !
और वो इन्द्र की मेहरबानी पर सो नहीं पाए रात भर
घर की छत से टपकते पानी ने भर दिए थे
बोतल, डिब्बे, गिलास और परात.
ओ, मौसम तुम आना
झूम कर आना
पर, थोड़ा रहम के साथ आना.
सबके लिए सर्दी, गर्मी और बारिश अच्छी नहीं होती.