भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो सारे फूल बासी ला रह रहे हैं / जियाउर रहमान जाफरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो सारे फूल बासी ला रह रहे हैं
गजल में हम उदासी ला रहे हैं

हकीकत तो ज़मीं पर दिख रही है
दलित की बात सियासी ला रहे हैं

न मतला है न मकता ही सही है
गजल हम अच्छी खासी ला रहे हैं

न कुछ लिखना न पढ़ना आ रहा है
हम अस्सी में उनासी ला रहे हैं

दुखों को रख लिया सब से छुपा कर
हम होठों तक उजासी ला रहे हैं

अभी तक सोच तो बदली नहीं है
लगाकर फेरे दासी ला रहे हैं

वो बस एक बार मुझको देख भी ले
बड़ी मुश्किल से खांसी ला रहे हैं