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वो स्वयं से मिला-जुला ही नहीं / जहीर कुरैशी

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वो स्वयं से मिला-जुला ही नहीं
वो जो दर्पण को देखता ही नहीं

ये सदा उसकी कूटनीति रही
जो कहा वो कभी किया ही नहीं

मेरे जीवन से जो चला ही गया
उसको फिर मुड़के देखना ही नहीं

जो भी कहना था कह दिया तुमने
मेरे कहने को कुछ बचा ही नहीं

उसको संदेह की है वीमारी
और संदेह की दवा ही नहीं