शम-ए-उम्मीद जला बैठे थे
दिल में खुद आग लगा बैठे थे
होश आया तो कहीं कुछ भी न था
हम भी किसी बज़्म में जा बैठे था
दश्त गुलज़ार हुआ जाता है
क्या यहाँ अहल-ए-वफ़ा बैठे थे
अब वहाँ हश्र उठा करते हैं
कल जहाँ अहल-ए-वफ़ा बैठे थे
शम-ए-उम्मीद जला बैठे थे
दिल में खुद आग लगा बैठे थे
होश आया तो कहीं कुछ भी न था
हम भी किसी बज़्म में जा बैठे था
दश्त गुलज़ार हुआ जाता है
क्या यहाँ अहल-ए-वफ़ा बैठे थे
अब वहाँ हश्र उठा करते हैं
कल जहाँ अहल-ए-वफ़ा बैठे थे