भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो हसीं बाम पर नहीं आता / 'हफ़ीज़' जौनपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो हसीं बाम पर नहीं आता
चाँद अपना नज़र नहीं आता

हूक उठती नहीं है कब दिल से
मुँह को किस दिन जिगर नहीं आता

कौन इस बे-कसी में पुरसाँ है
होश दो दो पहर नहीं आता

ये भी सुनना था वाए ना-कामी
मरते हैं और मर नहीं आता

थी कभी बात बात में तासीर
अब दुआ में असर नहीं आता

खेल है क्या मिज़ाज-दाँ होना
काम ये उम्र भर नहीं आता

सादगी का हूँ उस की दीवाना
अभी जिस को सँवर नहीं आता

बे-ख़ुदी है कि छाई जाती है
होश आता नज़र नहीं आता

ये हसीं और इल्तिजाएँ ‘हफीज़’
रहम तुम को मगर नहीं आता