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वो / नीरजा हेमेन्द्र
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					गेहूँ की सुनहरी बालियों को 
लगातार पीट-पीट कर 
दाने अलग कर देता वो
ठीक उसी तरह जैसे
दाना-दाना बिखेर दी गयीं
उसकी इच्छायें
उसके सपने
सपने! मेहनतकश कृशक के
भूख और अभावों के
अन्तहीन खलिहानों में 
वह हाँफ-हाँफ कर 
संघर्ष कर रहा है
दानों को बटोरने की 
और ऐसा करते हुए वह 
मर रहा है प्रतिदिन
एक छोटी-सी मौत
बुझते दीये की लौ-सी 
उसकी आँखें 
अपने सपने छुपा कर 
रखना चाहता है वह उनमें
वह तेजी से दानों को 
बटोरने में लग जाता है
वह मरता है
कई-कई बार
काँप रहे हैं
उसके हाथ।
	
	