व्यंजन / फुलवारी / रंजना वर्मा
क से कलम उठा कर आओ लिक्खें नयी कहानी।
बचपन से जो हमें सुनाया करती बूढी नानी॥
ख से खरगोश मिला कछुए से थी फिर दौड़ लगायी।
कछुआ था धीरज से जीता धैर्य न खोना भाई॥
ग गणेश गणपति जगवंदन पूजे दुनियाँ सारी।
घ से घर अपना सपने सा जन्नत यही हमारी॥
च से चमक रहा है चंदा ऊपर नील गगन में।
चमचम कैसे अगणित तारे भाते सब को मन में॥
छ से छत्रपति वीर शिवाजी छत्रसाल सा मानी।
ज से जय भारत माता की कहें वीर बलिदानी॥
झ से झंडा उड़े तिरंगा अम्बर में फहराये।
आन न इसकी जाने पाये जान भले ही जाये॥
ट से टमाटर लाल रंग का तन में खून बढ़ाता।
ठ से ठोकर खा जाता है देख न जो चल पाता॥
ड से डमरू शिव शंकर का
ढ से ढपली प्यारी।
त से तराजू उठा तौल लो फल अनाज तरकारी॥
थ से थरथर काँपा करती हर दुल्हन की काया।
द दहेज के दानव ने सबको ऐसा भरमाया॥
ध से धरती माता हमको है प्राणों से प्यारी।
न से नमन करो इस का पावन इस की हर क्यारी॥
प पवित्र यह देश जहाँ है गंगा जमुना बहती।
फ से फसलें फल फूलों से मिल हरियाली रहती॥
ब से बली बनो सारे बजरंगबली के चेले।
भ से भरत बनो जो भारत की मिट्टी में खेले॥
म से मंदिर मस्जिद प्यारे मक्का और मदीना।
गुरुद्वारा गिरजाघर मिल कर सिखलाते हैं जीना॥
य से यमुना नदी है जिसके तीर कन्हैया खेला।
र से रघुपति ने दंडक वन में था संकट झेला॥
ल से लड़के हैं हम इस के भारत अपनी माता।
व से वन बिन इस के हम को जीवन कभी न भाता॥
श से शंभु भवानी शंकर के गुण निशि दिन गायें।
ष षड्यंत्र करे यदि कोई उस को मार भगाओ॥
स से सत्य सदा तुम बोलो बच्चों जब मुँह खोलो।
ह से हम सब भारतवासी भारत की जय बोलो॥
बोलो - भारत माता की जय।
वंदे मातरम॥