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व्यक्तिगत / शशि सहगल
Kavita Kosh से
ऋतु की पहली बरसात
मिट्टी की गंध
न सोंधी
न रोमांचक।
रुचियाँ बदल गई हैं अब
पसन्द था तुम्हें कभी
मेरे संग बरसात में भीगना
आज
भीगते हुओं को देखना।