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व्यतीत होता / उपेन्द्र कुमार

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जंगल से लड़कियाँ काट
जब बना रहा होता है वर्तमान
एक सुन्दर-सा पालना
भविष्य के लिए
तो अतीत
लगा होता है सदा साथ उसके
समझाता और
सावधान करता

सदियों को चीर
बहती इस नदी का क्या भरोसा?
आवश्यक नहीं
गंगा की तरह जब यह बहाए अपने पुत्र धारा में
तो वे प्राप्त कर लें
मुक्ति

निर्माण में ध्वस्त
अतीत और वर्तमान भी
नहीं जानते
लहरों पर हिलता-डोलता
कहाँ तक जाएगा
किसी सदी के स्तन भर कर
तन जाएँगे
वात्सल्य-दुग्ध से
और हाथ बढ़ा
मध्य धार से
खींच लेगी
पालना

नहीं जानते हुए
कुछ भी ठीक-ठीक
संभावित दृश्यों के आनन्द में
हैं मग्न
लयबद्ध क्रम में
उठते-गिरते हैं हाथ
होंठ गुनगुनाते हैं लोरी
साथ बैठा अतीत
सिर हिलाता है
गीत की टेक पर
पुलकित होता है
सोच
संग्रहालय में रखा
पालना बनेगा पहचान
भविष्य वापस मुड़
देखेगा मुझे
काम समेट
औजार संभाल
दौड़ पड़ता है
हाथ-मुँह धोने
नदी तीर
अतीत
बनता व्यतीत
होता वर्तमान