भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

व्यतीत / अजित कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घोंघा तो गुज़र गया,
रेत पर चमक रहीं सीपियाँ... शंख...
यहाँ से वहाँ तक
सब
खँडहर... खँडहर ।