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व्यथा मौन / अज्ञेय

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व्यथा मौन, वाञ्छा भी मौन, प्रणय भी, घोर घृणा भी मौन-
हाय, तुम्हारे नीरव इंगित में अभिप्रेत भाव है कौन?
कोई मुझे सुझा दे-मर भी जाऊँ तो जाऊँ, संशय की आग बुझा दे!

मुलतान जेल, 30 जनवरी, 1934