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व्यथा सब की / अज्ञेय

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व्यथा सब की,
निविड़तम एकांत
मेरा ।

कलुष सब का
स्वेच्छया आहूत;
सद्यःधौत अन्तःपूत
बलि मेरी ।

ध्वांत इस अनसुलझ संसृति के
सकल दौर्बल्य का,
शक्ति तेरे तीक्ष्णतम, निर्मम, अमोघ
प्रकाश-सायक की !