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व्याकरण हो गया वो शख़्स ज़माने के लिए / ज्ञान प्रकाश विवेक
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व्याकरण हो गया वो शख़्स ज़माने के लिए
फ़ारमूले जो बनाता था हँसाने के लिए
खा गया नक्शा किसी सेठ का उसके घर को
यत्न जिसने किए बस्ती को बसाने के लिए
एक चिड़िया है जो दुख मेरा समझ सकती है
वो भी भटकी है बहुत अपने ठिकाने के लिए
ज़िन्दगी ! मैं तेरी पलकों पे बिछाऊँगा सहर
कोई सोई हुई उम्मीद जगाने के लिए
किस चालाकी से उसे ओढ़ लिया है मैने
वो जो फ़ुट्पाथ था रातों को बिछाने के लिए
आग दंगे की लगानी तो थी आसान मगर
ख़ून के अश्क गिराये थे बुझाने के लिए