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व्याकुल चाह / सुभद्राकुमारी चौहान
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					सोया था संयोग उसे 
किस लिए जगाने आए हो?
क्या मेरे अधीर यौवन की 
प्यास बुझाने आए हो??
रहने दो, रहने दो, फिर से 
जाग उठेगा वह अनुराग।
बूँद-बूँद से बुझ न सकेगी, 
जगी हुई जीवन की आग॥
झपकी-सी ले रही 
निराशा के पलनों में व्याकुल चाह।
पल-पल विजन डुलाती उस पर 
अकुलाए प्राणों की आह॥
रहने दो अब उसे न छेड़ो, 
दया करो मेरे बेपीर!
उसे जगाकर क्यों करते हो? 
नाहक मेरे प्राण अधीर॥
	
	