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व्याप्ती रही व्यथा / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
सब ने सींचा
अपना-अपना सुख
तुम ने
मैंने
उसने
यों व्यापती रही
व्यथा,
उस से
तुम में, मुझ से
सब कुछ में