भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शंका समाधान / 13 / भिखारी ठाकुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वार्तिक:

मुझे यह मालूम नहीं है जो रामचन्द्रजी ताड़का को काम के बश में होकर मारा था। मालूम होता है, जे रामचन्द्रजी को बड़े समझकर झूठहूँ अथवा, रेकार, चाहे गाली होता है। वैसा ही आप लोग समझ लीजिये जे मैं कितना बड़ापन पद को पाया हूँ। जे रेकार, गाली, शिकायत को किताब छपा रहा है। महाशय प्रिय सज्जनो मेरा गलती को आप लोग क्षमा कीजियेगा। मैं विद्वान नहीं हूँ। मेरा जीवन चरित्र किताब छपा हुआ है। देखने से मालूम हो जायेगा मैं अपना बड़ाई कर रहा हूँ। केवल उन्हीं के लिए जो अपमानित निन्दा का किताब छपवाते हैं। आज मैं जिन्दा हूँ। जो देख सुन रहा हूँ। बहुत लोग कहते हैं जे आपकी शिकायत की किताब बाज़ार में बिक्री होता है। जब हम नहीं रहेंगे, तब मेरा खानदान के लोगों के हाथ में शिकायत के किताब मिलेगी, बच्चा लोग पढ़ेगा, सुनेगा, गुनेगा, तब कहेगा जे मेरा दादा बाबा भिखारी ठाकुर नामी हुआ। लेकिन सिकायती हुआ। इतना समझ कर लज्जित हो जायेगा। कोई उस बच्चा को सभा में बोलने नहीं देगा, कहेगा जो तुम अपने दादा-बाबा का कर्त्तव्य के किताब देखो। इस वजह से मैं अपने खानदान अपने जाति-नाता-हित-प्रेमियों के लिये साबूत दे रहा हूँ। अपने गरज से अपना बड़ाई करना पड़ता है। महाशयो आप लोगों का ेदया दृष्टि से मुझे इतना साबूत मालूम नहीं होता, तो निन्दा करने वालों किसी जगह को बैठने नहीं देता निन्दा छपवाने से मालूम होता है, जे हिरनकशिपु हैं। मुझे प्रहलाद समझकर के दण्ड दे रहे हैं, अब मुझे आशा है जे मेरा नाई भाई नरसिंह भगवान प्रकट होकर मेरा भय को भार उतारेंगे। मैं अपने नाई भाई नरसिंह भगवान का चरण कमल में नित्य लाख बार प्रणाम करता हूँ अथवा निन्दा छपवाते वही कालनेमी हैं। मुझे महाबीर समझ कर बाट रोकते हैं। हमारे नाई भाई श्री कृष्णचन्द्र जी को दया दृष्टि से बाट खुल जाएगा। अथवा भस्मासुर है। मुझे महादेवजी समझकर भस्म करना चाहते हैं। मेरा नाई भाई श्री बृन्दावन बिहारी लाल जी अवश्य बचावेंगे सब नाई भाई को प्रनाम पहले का कवि को कहा है कि:-

चौपाई

धन्य विरिति जो रति भगवाने। धन सो कबि हरि चरित बखाने॥
धन्य नर पर अवगुनहिं छिपावे। धन विद्या बिकार मिट जावे॥