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शंख और लामा / दीपक जायसवाल

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तिब्बत के पर्वतों से आते हैं लामा
इक रोज़ ख़ुद के देश में
बंधक बना लिए गए लामा
निर्वासित जीवन जीते हैं लामा
असीम दुःख सहते हैं
आँसू पीते हैं लामा
बहुत कम बोलते हैं
बड़े संवेदनशील होते हैं लामा
हर वह चीज जो बोलती है
उनको सुनते हैं
जिन चीजों के पास
अपनी आवाज़ नहीं
उन्हें और ग़ौर से सुनते हैं लामा
पत्थरों पर सोते हैं
बहुत धीरे-धीरे चलते हैं लामा
हमेशा ध्यान में होते हैं
शंख रखते हैं लामा
शंखों से गुजरते वक़्त हवाएँ
लामाओं से बात करती हैं
जब कोई लामा आत्मदाह करता है
रुंध जाते हैं शंखों के गले
झुककर बोलते हैं लामा
लामाओं के बाल बड़े नहीं होते
चीवर ओढ़ते हैं लामा
जब कोई लामा मरता है तो
समुन्द्र छोड़ जाते हैं अपने किनारे
एक शंख
उस दिन बादल ख़ूब बरसते हैं
फूल उस दिन नहीं खिलते
सूरज डूबते वक़्त उस दिन
बहुत भारी हो जाता है