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शंख हुए सीप / कुमार रवींद्र
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गाँव-गली बिजली के 'बल्ब' सजे
हार गए दीप
खेतों में ट्रैक्टर की आवाज़ें
सहम रहे बैल
पक्की हो गई सड़क
सोचों में डूब गई गैल
बरसों से उजड़ रही
कच्ची दीवारों की लीप
खेतों में बँटे हुए सपने
साथ हैं अनोखे
नई हवा लाई है
घर-घर में कई नई धोखे
लढ़िया के टूट रहे पहिए
जब से है आई नई जीप
बीत गये बाबुल के लोक-गीत
फ़िल्मी हैं गाने
कंधों पर लटके 'ट्राँजिस्टर'
अँगरेजी बाने
मंदिर के घंटे चुप हो गए
शंख हुए सीप