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शकुनाक्षर - शकुनादे / कुमांउनी
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ये वो शगुन के आखर हैं - जो कुर्मंचालीय संस्कृति में हर शुभ कार्य में बांचे जाते हैं. कुर्मांचल की परम्पराएं अनंत काल से शंख - घंट की ध्वनि एवं भरे हुए कलश को शगुन का पर्याय मानती आई हैं . कुल वधुओं के अखंड सौभाग्य एवं उनकी हरी - भरी गोद के प्रति अपनी समस्त शुभकामनाएं संजोए है यह शगुन गीत
शकूनादे शकूनादे काजये,
आती नीका शकूना बोल्यां देईना ,
बाजन शंख शब्द ,
देणी तीर भरियो कलश,
यातिनिका, सोरंगीलो,
पाटल आन्च्ली कमले को फूल सोही फूल मोलावंत गणेश,
रामिचंद्र लछीमन जीवा जनम आद्या अमरो होय,
सोही पाटो पैरी रैना ,
सिद्धि बुद्धि सीता देही
बहुरानी आई वान्ती पुत्र वान्ती होय