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शख़्स इस वक़्त जो सफ़र पर है / ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

शख़्स इस वक़्त जो सफ़र पर है।
दिल तो दरअस्ल उसका घर पर है।

बाल-बच्चे हैं और बीवी भी,
फ़िक्र सबकी हमारे सर पर है।

उन परिंदों का कुछ ख़याल करो,
जिनका घर बार इस शज़र पर है।

कामियाबी उसे मिले कैसे,
पाँव जिसका ग़लत डगर पर है।

शौकिया तौर वो चला बैठा,
तीर तब से फंसा जिगर पर है।

बाज़ आएगा वो न आदत से,
जब नज़र ही किसी के ज़र पर है।

'ज्ञान' दहशतज़दा हुआ आलम,
ध्यान सबका बुरी खबर पर है।